[Edited By: Admin]
Wednesday, 3rd July , 2019 06:43 pmदेश की दिग्गज फिल्म निर्माता कंपनी बॉम्बे टॉकीज अपनी 85 वीं वर्षगांठ का जश्न मना रही है। सिनेमा की बहुत ही कम उम्र में बॉम्बे टॉकीज का जन्म भारत में हुआ था जब दुनिया की अन्य समकालीन फिल्म कंपनियों जैसे वार्नर ब्रदर्स एंटरटेनमेंट, यूनिवर्सल पिक्चर्स, 20 वीं शताब्दी फॉक्स, पैरामाउंट पिक्चर्स का जन्म हुआ और दुनिया के लिए सिनेमाई जादू पैदा करने के लिए उनका जन्म हुआ। दर्शकों, लेकिन बॉम्बे टॉकीज एकमात्र प्रीमियर फिल्म कंपनी है जिसने करिश्माई वापसी की है और अपने पुराने गर्व और गौरव को साठ-सत्तर साल के बाद के अंधेरे के बाद दोहराया है।
यह भारतीय सिनेमा बॉम्बे टॉकीज के उल्लेखनीय इतिहास में 1934 का ऐतिहासिक वर्ष था, जिसे राजनारायण दूबे ने हिमांशु राय और देविका रानी के साथ सामाजिक रूप से प्रासंगिक, विचारशील और सार्थक सिनेमा के लिए स्थापित किया था। बॉम्बे टॉकीज प्रीमियर फिल्म कंपनी थी जिसने सिनेमाई निर्माण के सभी क्षेत्रों की रचनात्मक प्रतिभाओं का उत्पादन किया। बॉम्बे टॉकीज़ को अग्रणी संस्था के रूप में याद किया जाता है।
जिसके पास कला, विज्ञान और वाणिज्य की मजबूरियों को सही ठहराने का एक भविष्यवादी दृष्टिकोण था। बॉम्बे टॉकीज़ ने अपनी स्थापना के साथ देविका रानी, अशोक कुमार, मधुबाला, दिलीप कुमार, राज कपूर, महमूद, किशोर कुमार, लता मंगेशकर, और अन्य कई महान प्रतिभाओं को पेश किया था। यह ध्यान दिया जाना है कि उन्हीं परंपराओं की संस्कृति और विरासत बॉम्बे टॉकीज को अपने नए अवतार में बनाए रखने के लिए लेखक, अभिनेता और निर्देशक आजाद ने सार्थक फिल्मों का निर्माण किया है और सिनेमाई दिग्गज राजनारायण घन द्वारा स्थापित स्वर्ण विरासत को बनाए रखा है।
भारतीय सिनेमा जगत के स्तम्भ कह जाने वाले राजनारायण दुबे ने "द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़" के साथ साथ "बॉम्बे टॉकीज़ पिक्चर्स", "बॉम्बे टॉकीज़ लैबोरेट्रीज' और "द बॉम्बे टॉकीज़ लिमिटेड" की स्थापना सन १९३४ की थी और वह एक मात्र ऐसे व्यक्ति थे जो सभी कंपनियों का संचालन स्वयं कर रहे थे। क्रिएटिव सहयोगी के रूप में हिमांशु राय और देविका रानी उनके प्रमुख सहयोगी रहे। इनके अथक प्रयासों का परिणाम रहा कि "द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़" एशिया की पहली अत्याधुनिक कंपनी बनी, जिसने न जाने कितने ही अनमोल कलाकारों, निर्देशकों, संगीतकारों, गायकों तथा तकनीशियंस को जन्म दिया।
जिस दौर में राजनारायण दूबे ने बॉम्बे टॉकीज़ स्थापित की उस समय विश्व जगत में कुछ ही फ़िल्म कम्पनियां जैसे वार्नर ब्रदर्स एंटरटेनमेंट, यूनिवर्सल पिक्चर्स, २० सेंचुरी फॉक्स, पैरामाउंट पिक्चर्स थी जो सिनेमा को रचनात्मकता के माध्यम से स्थापित करने का काम कर रही थी। बॉम्बे टॉकीज़ ने राजनारायण दूबे के नेतृत्व में भारत के साथ साथ एशिया के सिनेमा जगत को विश्व भर में विश्वसनीय बनाया और आज भी अपनी वापसी के साथ उसी परंपरा का पालन कर रही है ।
इनमे ऐसे एक या दो नहीं कई ऐसे नाम है जिन्होंने भारतीय सिनेमा में अपनी विशेष पहचान बनायीं, इनमे सबसे पहला नाम है दादामुनि के नाम से सफलता की चरम सीमा तक पहुंचने वाले सदाबहार अभिनेता अशोक कुमार का। अशोक कुमार ने द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़ के फ़िल्म अछूत कन्या से अपने अभिनय का सफर शुरू किया, इनके बाद दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, मधुबाला, मेहमूद, किशोर कुमार, उत्तम कुमार, प्राण, जैमिनी गणेसन, सुरैया, लता मंगेशकर, मुकरी, डेविड, शोभना समर्थ (अभिनेत्री नूतन, तनूजा की माँ और स्टार अभिनेत्री काजोल की नानी), नलिनी जयवंत, लीला चिटनीस, कामिनी कौशल, उषा किरण, के साथ और न जाने कितने नाम इसमें जुड़ते गए।
"द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़" ने कलाकारों के अलावा सिनेमा जगत के मील का पत्थर कह जाने वाले कई निर्देशकों, गायकों और संगीतकारों पहचान दिलाई। भारतीय सिनेमा को पहली बार विदेशी परदे तक पहुंचने वाले निर्देशक सत्यजीत रे के अलावा कमाल अमरोही, गुरु दत्त, पी. एल संतोषी, ज्ञान मुख़र्जी, किशोर साहू, एल. वी प्रसाद, हृषिकेश मुख़र्जी, अमिया चक्रवर्ती, फणी मजुमदार, शक्ति सामंत जैसे सफल निर्देशकों को भी "द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़" से ही सफलता मिली। इतना ही नहीं सिनेमा जगत की पहली महिला संगीतकार सरस्वती देवी के साथ ही सचिन देव बर्मन और सलिल चौधरी का परिचय भी दुनिया को "द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़" ने ही कराया।
लगभग ६ दशक बाद "द बॉम्बे टॉकीज़ स्टूडियोज़" ने निर्मात्री कामिनी दूबे, बॉम्बे टॉकीज़ फाउंडेशन, विश्व साहित्य परिषद्, वर्ल्ड लिटरेचर काउंसिल और आज़ाद ट्रस्ट के सहयोग से लेखक, निर्देशक, संपादक "आज़ाद" के साथ २८ भाषाओं में फ़िल्म राष्ट्रपुत्र का निर्माण कर शानदार वापसी की है। सैनिक स्कूल के विद्यार्थी रहे और दार्शनिक, चिंतक, शोधक आज़ाद ने फिल्म राष्ट्रपुत्र का निर्देशन करके एक नया विश्व कीर्तिमान बनाया और भारतीय संस्कृति और सभ्यता को विश्व के जन जन तक पहुंचने का कार्य किया। इसके परिणाम स्वरुप २१ मई २०१९ को फिल्म राष्ट्रपुत्र का प्रदर्शन कांन्स फिल्म समारोह में किया गया। साथ ही साथ आज़ाद ने "अहम् ब्रह्मास्मि" के नाम से देव भाषा संस्कृत की पहली मुख्यधारा की फ़िल्म का सृजन कर भारत के अमुल्य धरोहर से विश्व दर्शकों को जोड़ने का ऐतिहासिक काम किया है।
इस अवसर पर फ़िल्मकार आज़ाद ने प्रखर राष्ट्रवाद का जयघोष करते हुए कहा कि इस भारत भूमि की गरिमा एवं अस्तिव को बचाए और बनाये रखने का एक मात्र सूत्र है अपनी जड़ो की ओर लौटना, हजारों साल की गुलामी के कारण भरतवंशियों में अपने गौरवशाली अतीत और दैवी संस्कृति के प्रति उदासीनता का भाव, बोध की दरिद्रता का समावेश हो गया है । अपने मूल स्वरुप को जानने के लिए हमें अपनी जड़ो को पहचानने और उसे पुरुषार्थ से सींचने की आवश्यकता है । फ़िल्म अहं ब्रह्मास्मि उस सनातन गौरव का उदघोष है ।
इस अवसर पर बॉम्बे टॉकीज़ के अभिन्न अंग राष्ट्रवाद के प्रखर समर्थक लेखक, कवि और लेखन विभाग के अध्यक्ष अभिजित घटवारी ने बॉम्बे टॉकीज़ के प्रांगण में हजारों दर्शकों के सामने अपने गुरु गम्भीर स्वर में कहा कि प्रखर राष्ट्रवाद ही भारत का भविष्य है और फ़िल्मकार आज़ाद का उदय राष्ट्रवाद का विस्फोट है ।
सनातनता और राष्ट्रवाद के जोशीले माहोल में बॉम्बे टॉकीज़ की क्रिएटिव डायरेक्टर मौसुमी चटर्जी ने बंकिम चन्द्र चटर्जी को स्मरण करते हुए कहा कि राष्ट्रवाद की जो सनातन लहर वन्दे मातरम् के साथ बंग भूमि को कभी उद्वेलित एवं अभिमंत्रित किया था उसी की पुनरावृत्ति पुरे देश में अहं ब्रह्मास्मि के माध्यम से फ़िल्मकार आज़ाद कर रहे है । लेखक, निर्देशक और अभिनेता के रूप में आज़ाद ने संस्कृत फ़िल्म अहं ब्रह्मास्मि का सृजन कर पूरी तरह से भारत के सनातन गौरव को विश्व में प्रतिष्ठित करने का संकल्प लिया है ।