राजबीर सिंह
कानपुर। पहलगाम में आतंकी हमले के बाद आपरेशन सिंदूर से भाजपा को अपनी राजनीति का टारगेट मिल गया है । विपक्ष, भाजपा के जाल में फंस कर भटक रहा है। विपक्ष न तो सरकार की हर कार्रवाई का खुलकर समर्थन कर पा रहा है और न ही खुलकर विरोध। पुलवामा हमला और फिर बालाकोट एयर स्ट्राइक और एबटाबाद की कार्रवाइयों के बाद से दोनों देशों के तनाव अब चरम पर है। आम जनता के लिए भले यह पीड़ादायी हो लेकिन दोनों ही देशों की सत्ता और कुर्सी के लिए यह स्थिति बहुत सपोर्ट करती है। जैसे ही विपक्ष ने भाजपा सरकार पर कुछ सवाल खड़े किए खुद विपक्ष की भूमिका पर सवाल उठने लगे, जबकि भाजपा बिहार के बाद पश्चिम बंगाल और यूपी के भावी चुनावों को टारगेट कर अपनी हर रणनीति पर फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रही है।
केंद्र सरकार लगातार यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि देश की सुरक्षा उसकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि “सेना को पूरी छूट है, और पूरा देश उनके साथ खड़ा है। सरकार ने विपक्ष से भी एकजुटता दिखाने की अपील की, जिसके बाद विपक्ष ने डरते-डरते सरकार का समर्थन तो किया लेकिन अपना वोट बैंक बचाने के लिए आपरेशन रुकते ही सवाल भी खड़े करने शुरू कर दिए, जवाब में सरकार ने ऐसी रणनीति बनाय़ी कि अलग-अलग विपक्षी दलों में ही नहीं पार्टियों के अंदर भी आपस में लाठियां उठने लगीं।
विपक्ष की दुविधा: समर्थन या विरोध?
विपक्षी दलों के सामने जटिल स्थिति है। एक तरफ, देशभक्ति का नारा देकर सरकार के साथ खड़ा होना है, तो दूसरी तरफ सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने का दबाव भी है।
• कांग्रेस ने सरकार के साथ खड़े होने का ऐलान किया है, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठाया है कि “क्या सरकार सैन्य रणनीति में विफल तो नहीं?
• शिवसेना और एनसीपी जैसे दलों ने सीधे तौर पर सरकार का समर्थन किया है।
• आम आदमी पार्टी (आप ) और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) जैसे क्षेत्रीय दलों ने भी सेना के प्रति समर्थन जताया है, लेकिन राजनीतिक मुद्दों पर चुप्पी नहीं साधी है।
भाजपा सरकार ने ऐसी रणनीति बनायी है जिससे एक तीर से दो निशाने लगे। दुनिया के तमाम देशों में भारतीय सांसदों के प्रतिनिधि मंडल भेजकर पाकिस्तान की बखिय़ा उधेड़ने के साथ देश के अंदर विपक्ष को भी तार-तार करने की कोशिश की है। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता दूसरे देशों में जाकर न केवल पाकिस्तान के आतंकवादी चरित्र को दुनिया के सामने उजागर कर रहे हैं बल्कि भारत सरकार की कार्रवाई का समर्थन यानी मोदी सरकार की तारीफ कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि ये सांसद अलग-अलग पार्टियों से होकर भी एक सुर में जो बोल रहे हैं उससे सीधे भाजपा को फायदा मिल रहा है।
आतंकी हमलों के बाद कश्मीर में सेना की कार्रवाइयों पर बार-बार उत्पीड़न का आरोप लगाकर सवाल खड़े करने वाले नेता भाजपा की रणनीति में कुछ ऐसे फंसे कि अब सरकार का ही गुणगान करने को मजबूर हैं। ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के असदुद्दीन ओवैसी हों, कांग्रेस के शशि थरूर या फिर तृणमूल कांग्रेस के अभिषेक बनर्जी, हमेशा सरकार पर तीखे प्रहार करने वाले यह नेता आज विदेशों में सरकार की भाषा बोल रहे हैं। भाजपा ने जिस तरह सांसदों का चुनाव किया, उससे कांग्रेस समेत कई पार्टियों में तो अंदरुनी मतभेद खड़े हो गए हैं। कांग्रेस के अलम्बरदार राहुल गांधी या खड़गे हों या तृणमूल कांग्रेस से ममता बनर्जी जैसे ही यह नेता सरकार पर कोई सवाल खड़ा करते हैं , भाजपा की ओर से इतने तीखे प्रहार होते हैं कि आगे कुछ बोलने के बजाय पार्टियां अपनी सफाई में जुट जाती हैं। विपक्ष के महंगाई, बेरोजगारी, अडानी-अम्बानी जैसे मुद्दे भी दब गए हैं, कुछ भी बोलने पर विपक्ष को पाकिस्तान की भाषा बोलने, देशद्रोही होने और सेना का मनोबल तोड़ने जैसे सवालों से घेरा जाता है और जनता तक यही संदेश देने की पूरी कोशिश भाजपा की ओर से होती है।
भाजपा की रणनीति तय, विपक्ष की बढ़ेंगी मुश्किलें
भाजपा तय रणनीति पर आगे बढ़ रही है, प्रधानमंत्री मोदी तमाम सभाओं में यही बोल रहे हैं कि पाकिस्तान की तरफ से अब जरा सी भी हरकत हुई तो जवाब गोली से मिलेगा। पाकिस्तान की भी अपनी मजबूरी है, न तो सेना, सरकार की मानती है और न आतंकवादी। इससे तय है कि सीमा पार से हरकतें बंद नहीं होने वाली, फिर ऐसा हुआ तो सरकार के लिए पाकिस्तान के साथ देश के अंदर विपक्ष को शांत बैठाने का और अवसर मिलेगा। तय है कि कई राज्यों के ही नहीं, अगला लोकसभा चुनाव भी पाकिस्तान और आंतक के मुद्दों पर लड़ा जाएगा।