राजस्थान के डूंगरपुर में शुक्रवार 14 मार्च को अनोखी होली में कम से कम 42 लोग जख्मी हो गए। इस होली में लोग ने एक-दूसरे पर रंग बरसाने के बजाय जमकर पत्थर बरसाए। ऐसे मे सवाल है कि क्या ये कोई होली की परंपरा है जी हां ये और कुछ नही ये राजस्थान के डूंगरपुर की अनोखी परंपरा है.

13 मार्च को होलिका दहना किया गया, 14 मार्च को देशभर मे होली खेली गई, कई जगहों पर आज भी होली खेल रहे है रंगाों को त्यौहार होली बड़े धूमधाम से मनाते है, होली का खुमार लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है। कहीं रंगों की होली तो कही फूलों की होली खेली जाती है। बरसाना की लड्डूमार और लट्ठमार होली तो आपने सुनी ही होगी लेकिन पत्थरमार होली का नाम आपने शायद ही पहली बार सुना होगा।
होली की कई परंपरा बेहद प्रसिद्ध ऐसे मे एक राजस्थान के डूंगरपुर में होली की परंपरा भी खास है डूंगरपुर जिले में धुलंडी के अवसर पर ये अनोखी और रोचक परंपरा निभाई गई. जिले के भीलूड़ा गांव में होली के दिन पारंपरिक रंग-गुलाल के बजाय पत्थरों की होली खेली गई. इस दौरान दो गुटों के बीच जमकर पत्थरबाजी हुई। होली की अनोखी रस्में लोगों की जान पर भारी पड़ गईं। हालांकि लोगों को खून बहने पर भी ऐतराज नहीं है। बात कर रहे हैं प्रदेश की दो ऐसी होली की परंपराओं की, जहां पत्थर और कोड़े बरसाकर होली का आनंद लिया जाता है।
डूंगरपुर के भीलूड़ा गांव में पत्थरमार होली खेली गई। इस होली में कम से कम 42 लोग जख्मी हो गए। घायलों को इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया गया है। गंभीर रूप से 3 घायलों को दूसरे अस्पताल में रेफर किया गया है।
पत्थरमार होली की परंपरा
राजस्थान के डूंगरपुर में पत्थरमार होली की एक अनोखी पंरपरा है यहां करीब पिछले 200 साल से धुलंडी पर लोग खतरनाक पत्थरमार होली खेल रहे हैं। डूंगरपुर के लोग रंगों के स्थान पर पत्थर बरसा कर खून बहाने को होली के दिन शगुन मानते हैं। इस दिन भारी संख्या में लोग स्थानीय रघुनाथ मंदिर परिसर में आते हैं और दो टोलियों बनाकर एक दूसरे पर पत्थर बरसाना शुरू कर देते हैं। इस खेल में घायल लोगों को तुरंत अस्पताल भी भर्ती करवाया जाता है।