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    Home | CRIME | जब अपमान का घूंट पीकर रह गए मनमोहन सिंह: राजीव-राहुल से है ये ख़ास कनेक्शन
    CRIME

    जब अपमान का घूंट पीकर रह गए मनमोहन सिंह: राजीव-राहुल से है ये ख़ास कनेक्शन

    VijayBy VijayDecember 28, 2024Updated:December 28, 2024No Comments4 Mins Read
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    भारत के प्रधानमंत्री के पद पर 10 सालों तक काबिज रहने वाले मनमोहन सिंह आज दुनिया को अलविदा कह गए. 92 साल की उम्र के इस पड़ाव पर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह कई बीमारियों से जूझ रहे थे. अर्थशास्त्र की पढ़ाई कर राजनीतिक जीवन में कदम रखने वाले मनमोहन सिंह के सामने कई ऐसे मौके आए जब उन्होंने अपमान का घूंट पीकर देशहित में फैसले लिए।

    Dr Manmohan Singh 1

    राजीव गांधी ने लगाई थी मनमोहन को फटकार
    बात है साल 1986 की जब भारत के प्रधानमंत्री के पद पर राजीव गांधी आसीन थे और मनमोहन सिंह योजना आयोग के उपाध्यक्ष थे. इस दौरान एक बार मनमोहन सिंह ग्रामीण अर्थव्यवस्था और विकास को लेकर प्रधानमंत्री को एक प्रजेंटेशन दिखा रहे थे. तभी राजीव ने उन्हें जोरदार फटकार लगा दी थी. इस बारे में जब अगले दिन राजीव से सवाल किया गया तो उन्होंने योजना आयोग को ही कठघरे में खड़ा कर दिया. तब राजीव गांधी ने कहा था कि योजना आयोग एक जोकर आयोग है. कहते हैं कि राजीव गांधी की इस टिप्पणी को लेकर मनमोहन सिंह काफी नाराज हुए थे. इतना ही नहीं उन्होंने तो इस्तीफा देने तक की ठान ली थी लेकिन दोस्तों के समझाने और देशहित के बारे में सोचकर अपने पद पर बने रहे. हालांकि पूरे कार्यकाल के दौरान वे साइड लाइन ही रहे. अंत में 31 अगस्त 1987 को वे इस पद से मुक्त हो गए.

    मनमोहन सिंह की स्किम का हुआ कांग्रेस में विरोध
    इसके बाद साल 1991 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने सलाहकार पीसी एलेक्जेंडर की सलाह पर मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बनाने का फैसला लिया. उस समय देश की आर्थिक स्थिति काफी खराब स्थिति में थी. इस दौरान राव ने मनमोहन को वित्त स्थिति सुधारने के लिए सख्त फैसले लेने की छूट दे दी. इसके बाद मनमोहन सिंह ने बजट पेश किया. मनमोहन का ये बजट आर्थिक उदारीकरण का बजट था।

    आपको बता दें लाइसेंस राज को खत्म करने और निवेश को बढ़ावा देने के लिए मनमोहन सिंह ने एक स्कीम बनाने की घोषणा की. मनमोहन के इस ऐलान का किसी और ने नहीं बल्कि कांग्रेस सांसदों ने ही विरोध करना शुरू कर दिया. तब कांग्रेसी अखबार नेशलन हेराल्ड ने इसे मिडिल क्लास पर चोट बताया था. इससे जुड़ा संस्मरण याद करते हुए कांग्रेस के वर्तमान महासचिव और कद्दावर नेता जयराम रमेश कहते हैं कि- जब मैंने मनमोहन सिंह को लेकर कांग्रेस सांसदों की नाराजगी की बात राव को बताई थी, तो उन्होंने संसदीय दल की बैठक बुलाई. इस बैठक के शुरू होते ही सांसदों ने मनमोहन पर बोलना शुरू कर दिया. सांसदो की नाराजगी को मनमोहन चुपचाप झेलते रहे. दिलचस्प बात तो ये है कि इस बैठक में खुद संसदीय दल के नेता राव मौजूद नहीं थे.

    जब हाईकमान के दबाव में दिया मंत्रालय
    साल 2004 में सोनिया गांधी ने अपनी जगह पर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी की कमान सौंपी. खुद सोनिया गांधी राष्ट्रपति में इससे संबंधित पत्र देने के लिए मनमोहन के साथ गईं. इसके बाद पीएम नियुक्त होने पर सोनिया की सलाह पर मनमोहन ने मंत्रिमंडल फाइनल किया. मनमोहन सिंह के सलाहकार संजय बारू एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर में लिखते हैं- तब सरकार में वित्त मंत्री का पद मनमोहन खुद के पास रखना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस हाईकमान की दबाव के कारण ये कुर्सी उन्हें पी चिदंबरम को देनी पड़ी. मनमोहन के पसंद के कैबिनेट मंत्री न बनने की खबरें भी उस वक्त खूब सुर्खियों में छाई रही, लेकिन पीएम पद के दायित्व के चलते मनमोहन पूरे मामले को लेकर चुप रहे.

    साल 2013 में जब अध्यादेश को लेकर हुआ विवाद
    सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2013 में राजनीति में अपराधियों के प्रवेश को रोकने के लिए एक फैसला सुनाया गया. इस फैसले के अनुसार 2 साल या उससे अधिक की सजा पाने वाले राजनेताओं की सदस्यता रद्द करने और सजा से 6 साल ज्यादा वक्त तक चुनाव ना लड़ने का फैसला सुनाया गया. उस समय इस फैसले को सीधा लालू यादव से जोड़कर देखा गया. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मनमोहन सिंह की सरकार ने पलटने के लिए अध्यादेश लाने का फैसला किया. इसको लेकर अध्यादेश भी कैबिनेट से पास करा लिया गया. इसी बीच कुछ एक्टिविस्टों और विपक्ष ने मनमोहन सरकार के अध्यादेश का विरोध कर दिया. अध्यादेश के विरोध में मीडिया में भी खबरें चलने लगी. इस दौरान पत्रकारों ने जब इसको लेकर राहुल गांधी से सवाल किया तो उन्होंने सड़क पर ही अध्यादेश फाड़ने की बात कह दी थी. कहा जाता है कि मनमोहन सिंह राहुल के इस बयान से काफी आहत हो गए थे और उन्होंने इस्तीफा देने का भी मन बना लिया था लेकिन देश और कांग्रेस हित में अपमान का घूंट पीकर चुप रह गए थे.

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    Vijay

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