केंद्र सरकार ने देश में जाति जनगणना के लिए मंजूरी दे दी है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा। बता दें जाति जनगणना की प्रोसेस पूरा होने में करीब 1 साल लगेगा। ऐसे में जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में मिल सकेंगे।
बता दें जातीय जनगणना को लेकर लंबे वक्त से विपक्षी दल मांग कर रहे थे। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि यह कदम सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देगा, साथ ही नीति निर्माण में पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा। आखिर जातिगत जनगणना है क्या, और इसके क्या फायदे व नुकसान क्या हो सकते हैं? आइए समझते हैं।
जातिगत जनगणना का सीधा मतलब यह है की देश में किस जाति के कितने लोग हैं। इसके स्पष्ट आंकड़े सामने आए, बता दें देश में जातिगत जनगणना पहले भी हुई है अब तक अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गिनती होती रही है, लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) का कोई पुख्ता सरकारी आंकड़ा नहीं था। पिछली बार 1931 में अंग्रेजों के जमाने में जातिगत जनगणना हुई थी।
भारत में जातिगत जनगणना का इतिहास औपनिवेशिक काल से जुड़ा है। पहली जनगणना 1872 में हुई थी, और 1881 से नियमित रूप से हर दस साल में यह प्रक्रिया शुरू हुई। उस समय जातिगत डेटा इकट्ठा करना सामान्य था। हालांकि, आजादी के बाद 1951 में यह फैसला लिया गया कि जातिगत डेटा इकट्ठा करना सामाजिक एकता के लिए हानिकारक हो सकता है। इसके बाद केवल एससी और एसटी का ही डेटा इकट्ठा किया गया। लेकिन पिछले कुछ सालों में सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य में बड़ा बदलाव आया है। अब ओबीसी समुदाय के लिए आरक्षण और कल्याणकारी योजनाओं की मांग काफी बढ़ गई है। ऐसे में जातिगत जनगणना की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी। 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) की थी, लेकिन इसके आंकड़े विसंगतियों के कारण सार्वजनिक नहीं किए गए। बिहार, राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों ने स्वतंत्र रूप से जातिगत सर्वे किए, जिनके नतीजों ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा में ला दिया।
जाति जनगणना पर आज किसने क्या कहा
कांग्रेस नेता रेणुका चौधरी ने जाति जनगणना को राष्ट्रीय जनगणना में शामिल किए जाने पर कहा, “ऐसी कितनी सारी समस्याएं हैं जिन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। महिला आरक्षण बिल कहां है? गायब है, यह इनकी(भाजपा) मजबूरी है, वे आदत से मजबूर हैं और इसलिए हर बार चुनाव से पहले वे कुछ न कुछ मुद्दा उठाया जाता है। जाति आधारित जनगणना का मुद्दा हमने पहले भी उठाया था। तेलंगाना में हमारे मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने इसे लागू भी कर दिया है।
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने जाति जनगणना को राष्ट्रीय जनगणना में शामिल किए जाने पर कहा, मैं प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त करना चाहती हूं। हमारी पार्टी अपने घटन के समय से ही इस विषय पर संघर्ष करती आई है, हमारे लिए सामाजिक न्याय हमारी प्रतिबद्धता है।
राष्ट्रीय जनगणना में जाति जनगणना को शामिल करने पर भाजपा नेता रावसाहेब पाटिल दानवे ने कहा, “केंद्र सरकार ने जाति जनगणना का जो निर्णय लिया है उसका हम स्वागत करते हैं और सभी नागरिक भी इसका स्वागत कर रहे हैं। कांग्रेस वालों ने कई बार मांग की कि जाति जनगणना की जाए लेकिन उनकी ये राजनीति थी क्योंकि अगर उन्हें करना था तो जब राजीव गांधी , इंदिरा गांधी, मनमोहन सिंह पीएम थे तब इन्हें मांग करके इसे करवा लेना चाहिए था क्योंकि ये इनके हाथों में था लेकिन उस समय इन्होंने नहीं किया। राजनीति से प्रेरित इनकी मांग थी। 2 साल लगेंगे जो जनरल जनगणना होगी उसी के साथ ये (जाति जनगणना)होगा। हर 10 या 11 साल में ये जनगणना होती
कांग्रेस नेता हरिश रावत ने राष्ट्रीय जनगणना में जाति जनगणना को शामिल किए जाने पर कहा, “पूरा देश और दुनिया जानती है कि राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे जी और INDIA गठबंधन का प्रयास है कि मोदी की सरकार को झुकना पड़ा और जाति जनगणना की बात को माननी पड़ी। अब हमारा आग्रह है कि जाति जनगणना कब शुरू करवाएंगे इसकी तारीख बताए..”