अमरनाथ की पावन यात्रा इस साल 3 जुलाई से शुरू होकर 9 अगस्त तक चलेगी। इस पवित्र गुफा तक पहुंचने के दो प्रमुख रास्ते है. पहला रास्ता पहलगाम होकर जाता है और दूसरा रास्ता सोनामार्ग बालटाल से जाता है।
अमरनाथ यात्रा के लिए रास्ता तैयार करने में सीमा सड़क संगठन जुटा हुआ है सीमा सड़क संगठन के कर्मचारी बर्फ हटाने में कड़ी मेहनत कर रहे हैं ताकि इस रास्ते से पवित्र गुफा के दर्शन के लिए जाने वाले हजारों श्रद्धालुओं का सफर सुरक्षित और आरामदायक हो. बता दें हिंदू धर्म मे अमरनाथ की गुफा को पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है। भगवान शिव को समर्पित यह प्रमुख धार्मिक स्थल जम्मू कश्मीर में स्थित है। हर साल इस गुफा के दर्शन के लिए धार्मिक यात्रा का आयोजन किया जाता है। इस बार यह यात्रा 3 जुलाई से शुरू हो रही है। यहां जानें, गुफा के बारे में रोचक और रहस्यमयी बातें…
अमरनाथ गुफा कश्मीर में लगभग 3,978 मीटर की ऊंचाई पर हिमालय में स्थित है. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु अमरनाथ गुफा की यात्रा कर प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन करते हैं. यह गुफा 150 फीच ऊंची और करीब 90 फीट लंबी है, अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिए 2 रास्ते है पहला रास्ता पहलगाम होकर जाता है और दूसरा रास्ता सोनामार्ग बालटाल से जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को अमरत्व का मंत्र सुनाया था और भगवान शिव ने यहां कई साल तपस्या की थी. यह जगह भगवान शिव का प्रमुख स्थान है.
कहानी
ऐसा माना जाता है कि एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से उनके अमरत्व का कारण जानना चाहा, तो भगवान शिव ने माता पार्वती को कहा कि इसके लिए आपको अमर कथा सुननी पड़ेगी। इसके लिए उन्होंने ऐसे स्थान की तलाश करना शुरू किया, जहां कोई और इस अमर कथा को नहीं सुन सकता था। अतः वे अमरनाथ गुफा पहुंचे। भगवान शिव ने जब माता पार्वती को अमर कथा सुनाने के लिए अमरनाथ गुफा की ओर प्रस्थान किया, तो रास्ते में सबसे पहले उन्होंने पहलगाम में अपने नंदी (जिस बैल की सवारी करते थे) का परित्याग किया। इसके बाद, चंदनवाड़ी में भगवान शिव ने अपने बालों (जटाओं) से चंद्रमा को मुक्त किया। शेषनाग नामक झील के तट पर उन्होंने अपने गले से सर्पों (सांपों) को भी मुक्त कर दिया। उन्होंने अपने पुत्र गणेश को महागुनस पर्वत पर छोड़ने का फैसला किया। फिर पंचतरणी नामक स्थान पर पहुंचकर भगवान शिव ने पंच तत्वों (पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश) का भी त्याग कर दिया। इन सब को पीछे छोड़कर भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ अमरनाथ गुफा में प्रवेश किया और वहां पर समाधि ले ली। इसके बाद, भगवान शिव ने कालाग्नि बनाई और गुफा के आसपास मौजूद हर जीवित प्राणी को नष्ट करने के लिए उसे आग फैलाने का आदेश दिया, ताकि माता पार्वती को छोड़कर कोई भी अमर कथा न सुन सके। फिर भगवान शिव माता पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताने लगे। लेकिन, अचानक कबूतरों का एक जोड़ा वहां पर पहुंचा और उन्होंने अमरत्व के रहस्य को सुन लिया। इसके साथ ही कबूतरों का यह जोड़ा अमरत्व को प्राप्त हो गया। ऐसा कहा जाता है कि गुफा में आज भी भक्तों को कबूतरों का वो जोड़ा दिखाई देता है!
क्या है गुफा का रहस्य?
14वीं शताब्दी के मध्य में करीब 300 साल तक अमरनाथ यात्रा बाधित रही. इसके बाद यह 18वीं शताब्दी में फिर से शुरू हुई. अमरनाथ की पवित्र गुफा गर्मी के कुछ दिनों को छोड़कर साल के अधिकांश समय बर्फ से ढंकी रहती है। दिलचस्प बात यह है कि इस पवित्र गुफा में प्रत्येक वर्ष बर्फ का शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है। कहा जाता है कि इस गुफा की छत की एक दरार से पानी की बूंदें टपकती हैं, जिससे बर्फ का शिवलिंग बनता है। क्योंकि, ठंड की वजह से पानी पूरी तरह से जम जाता है और बर्फ शिवलिंग का आकार ले लेता है। इस शिवलिंग के बगल में 2 छोटे और आकर्षक बर्फ के शिवलिंग भी बनते हैं, जिन्हें माता पार्वती और गणेश भगवान का प्रतीक माना जाता है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा शिवलिंग है, जो चंद्रमा की रोशनी के चक्र के साथ बढ़ता और घटता है। यह शिवलिंग श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूरे आकार में रहता है और अमावस्या तक इसका आकार घटने लगता है। ऐसा प्रत्येक साल होता है। इसी बर्फ के शिवलिंग के दर्शन के लिए हर साल देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु अमरनाथ की पवित्र गुफा की यात्रा करते हैं।