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    Home | महाकुंभ 2025 | महाकुंभ मेला भारत की संस्कृति, आस्था और आध्यात्मिकता का एक अद्भुत संगम
    महाकुंभ 2025

    महाकुंभ मेला भारत की संस्कृति, आस्था और आध्यात्मिकता का एक अद्भुत संगम

    VijayBy VijayJanuary 11, 2025No Comments4 Mins Read
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    प्रयागराज मे महाकुंभ का महापर्व 13 जनवरी से शुरू होने जा रहा है जो  26 फरवरी तक चलेगा। महाकुंभ मेला भारत की संस्कृति, आस्था और आध्यात्मिकता का एक अद्भुत संगम है। यह पर्व न केवल धार्मिक आयोजन है बल्कि भारत की प्राचीन परंपराओं, सभ्यताओं और अध्यात्मिकता की एक झलक प्रस्तुत करता है। न्यूज प्लस की स्पेशल रिपोर्ट में देखिए महाकुंभ की धार्मिक मान्यताएं।

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    महाकुंभ मेला भारत में आयोजित होने वाला एक विशाल मेला है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु हर बारहवें वर्ष में प्रयागराज – गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर, हरिद्वार – गंगा नदी के तट पर, उज्जैन – क्षिप्रा नदी के तट पर, नासिक – गोदावरी नदी के तट पर। प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में से किसी एक स्थान पर एकत्र होते हैं और नदी में पवित्र स्नान करते हैं। हर स्थान पर मेले का आयोजन एक विशेष खगोलीय स्थिति के आधार पर किया जाता है। यह मेला हिंदू धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है और इसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है। प्रत्येक 12वें वर्ष के अतिरिक्त प्रयाग में दो कुम्भ पर्वों के बीच छह वर्ष के अन्तराल में अर्धकुम्भ भी होता है। 2013 के कुंभ के बाद 2019 में प्रयाग में अर्धकुम्भ मेले का आयोजन हुआ था और अब 2025 में पुनः प्रयागराज मेले का आयोजन हो रहा है।

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    महाकुंभ मेला पौष पूर्णिमा के दिन आरंभ होता है और मकर संक्रान्ति इसका विशेष ज्योतिषीय पर्व होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा, वृश्चिक राशि में और वृहस्पति, मेष राशि में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रान्ति के होने वाले इस योग को “कुंभ स्नान-योग” कहते हैं और इस दिन को विशेष मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी से उच्च लोकों के द्वार इस दिन खुलते हैं और इस प्रकार इस दिन स्नान करने से आत्मा को उच्च लोकों की प्राप्ति सहजता से हो जाती है। यहाँ स्नान करना साक्षात् स्वर्ग दर्शन माना जाता है। कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से है। देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया। अमृत कलश को लेकर हुए संघर्ष के दौरान अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन होता है जिसमें लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, अखाड़े और तीर्थयात्री शामिल होते हैं

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    कुंभ मेले का मुख्य आकर्षण पवित्र नदियों में स्नान करना है। इसे पापों से मुक्ति और आत्मा की शुद्धि का साधन माना जाता है। कुंभ मेले के दौरान विशेष तिथियों पर संगम में स्नान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।आध्यात्मिकता का केंद्र: यह मेला साधु-संतों, योगियों, तपस्वियों और महात्माओं के संगम का स्थान है। कुंभ मेले के दौरान साधु-संतों और महात्माओं द्वारा धार्मिक प्रवचन दिए जाते हैं। साधु-संतों के विभिन्न अखाड़े अपनी विशिष्ट शोभायात्रा के साथ मेले में भाग लेते हैं। यह मेला भारतीय संस्कृति, कला, संगीत और परंपरा का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। आज के समय में महाकुंभ मेले का आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि पर्यटन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण हो गया है। सरकार और प्रशासन इस विशाल आयोजन के दौरान सुरक्षा, सफाई और सुविधाओं का विशेष ध्यान रखते हैं।

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    2017 में यूनेस्को ने कुंभ मेले को “मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत” के रूप में मान्यता दी। यह भारत के लिए एक गर्व का विषय है। कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आस्था और अध्यात्म की गहरी जड़ों का प्रतीक है। यह मेला हमें यह सिखाता है कि श्रृद्धा और विश्वास से हम आत्मा की शुद्धि और मोक्ष का मार्ग प्राप्त कर सकते हैं। महाकुंभ मेले में शामिल होना हर भारतीय के लिए गर्व और आध्यात्मिकता से जुड़ने का अवसर है। आर्या पाण्डे स्पेशल डेस्क न्यूज प्लस।

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    Vijay

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