झारखंड ‘मॉब लिंचिंग’ की लगातार बढ़ती घटनाओं के कारण हमेशा से ही चर्चा में रहता है। इन दिनों सरायकेला जिले में तबरेज अंसारी की मौत का मामला गर्म है। पिछले तीन वर्षों में यहां लिंचिंग की कुल 18 घटनाएं हो चुकी हैं. भीड़ की हिंसा के शिकार होने वालों में चार हिंदू भी हैं. मारे गये 11 लोग मुस्लिम समुदाय के, दो ईसाई आदिवासी और एक दलित समुदाय के थे. झारखंड की घटनाओं का अब इतना असर है कि संसद में ये मामला उठ चुका है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी घटना पर दुख जता चुके हैं. हालांकि, उनका कहना है कि इसकी वजह से पूरे झारखंड राज्य को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए.
पूरे मामले में जो चौंकाने वाली बात है, वह यह कि इन 18 मामलों में से आठ पूर्वी सिंहभूम के हैं. ताजा तरीन घटना, जिसमें तबरेज अंसारी मारा गया, बगल के सरायकेला खरसावां क्षेत्र का है. ये पूरा इलाका भाजपा के शीर्ष नेताओं का राजनीतिक क्षेत्र रहा है. वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास, पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा आदि इसी इलाके के हैं.
अब यदि इसे सिर्फ कानून व्यवस्था का ही प्रश्न मान लिया जाए, जैसा कि बीजेपी के नेता चाहते हैं, तो भी यह निराश करने वाली स्थिति है कि मुख्यमंत्री के अपने क्षेत्र में कानून की धज्जियां लगातार उड़ रही हैं और वहां सड़कों पर भीड़ तंत्र हावी है.
मॉब लिंचिंग में आदिवासी शामिल नहीं
झारखंड की छवि आदिवासी बहुल प्रदेश की है. यही इस राज्य के गठन का आधार भी बना था. हालांकि, 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में अब सिर्फ 26 परसेंट आदिवासी रह गए हैं. फिर भी कई लोगों को लगता है कि झारखंड के आदिवासी इन हिंसक घटनाओं में लिप्त हैं. इन घटनाओं के ब्योरे में जाने पर ये तथ्य सामने आता है कि मॉब लिंचिंग की इन घटनाओं में सामान्यतः आदिवासियों का हाथ नहीं होता. मसलन, तबरेज अंसारी की बर्बर पिटाई, जिसके बाद उनकी मौत हो गई, के मामले में अब तक गिरफ्तार लोगों के नाम हैं – भीमसेन मंडल, प्रेमचंद महली, कमल महतो, सोनामो प्रधान, सत्यनारायण नायक, सोनाराम महली,चामू नायक, मदन नायक, महेश महली और सुमंत महतो. एक अन्य अभियुक्त प्रकाश मंडल उर्फ पप्पू मंडल की गिरफ्तारी पूर्व में हो चुकी है.
यहां इन नामों को देने का उद्देश्य यह बताना है कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं में शामिल अभियुक्तों का सामाजिक आधार क्या है. इसके पूर्व गुमला की मॉब लिंचिंग घटना में, जिसमें एक ईसाई आदिवासी मारा गया, गैर-आदिवासी समुदाय के लोग अभियुक्त बनाये गये थे. गुमला की घटना एक मरे हुए बैल को लेकर हुई थी.
सवाल उठता है कि क्या झारखंड में ये घटनाएं प्रशासन की मर्जी के खिलाफ हो रही हैं या फिर इनके पीछे प्रशासन की शह है? अगर इन घटनाओं को प्रशासन रोकना चाहता है और इसके बावजूद ये घटनाएं नहीं रुक रही हैं, तो इसका मतलब है कि झारखंड में कानून का राज कमजोर पड़ा है. यह एक चिंताजनक बात है. अगर इन घटनाओं का मकसद इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले समाज में ध्रुवीकरण पैदा करना है, तो और भी चिंताजनक है.
पीएम मोदी का कहना है कि जिस तरह से झारखंड को मॉड लिंचिंग की वजह से बदनाम किया जा रहा है। वो गलत है। हर राज्य में हर तरह के लोग रहते हैं। जो उस राज्य में अच्छा कर रहे हैं उन्हें सपोर्ट देना चाहिए ताकि हिंसा करने वालों को रोका जा सके। सभी राजनीतिक दलों को किसी समस्या को खत्म करने के लिए एक जुट होना जरूरी है। हर क्षेत्र में किसी समस्या को लेकर राजनीति नहीं करनी चाहिए। मानवता के प्रति हमें संवेदनशील जिम्मेदारी रखनी बहुत जरूरी है।