मशहूर अदाकारा मीना कुमारी की शायरी को बॉलीवुड के दिग्गज शायर-डायरेक्टर गुलजार ने 'तन्हा चांद' नाम की किताब में संकलित भी किया है। मीना कुमारी की शायरी कमाल की है, और कई मौकों पर उन्होंने बहुत ही बेहतरीन अंदाज में शायरी पढ़ी भी है। मीना कुमारी को हिंदी सिनेमा की 'फीमेल गुरु दत्त' भी कहा जाता है और उन्हें ट्रेजेडी क्वीन के नाम से भी पहचाना जाता है। मीना कुमारी की फिल्म इंडस्ट्री में ऐसी इमेज थी कि एक्टर राजकुमार उन्हें देखकर अपने डायलॉग भूल जाते थे। मधुबाला उनकी जबरदस्त फैन थीं। अमिताभ बच्चन मानते हैं कि जिस अंदाज में मीना कुमारी डायलॉग बोलती हैं, उस अंदाज में दूसरा कोई नहीं बोल सकता।
परिणीता, साहिब बीवी और ग़ुलाम और पाकीज़ा जैसी फ़िल्मों में अपनी अदाकारी से हिंदी सिनेमा की 'ट्रेजडी क्वीन' का ख़िताब पाने वाली अभिनेत्री मीना कुमारी असल ज़िंदगी में भी हमेशा ग़मों और तकलीफों से दो चार रहीं। सिनेमा के पर्दे पर जहां उन्होंने किरदारों के दुखों को जिया, तो वहीं अपने दर्द का इज़हार करने के लिए मीना कुमारी ने शायरी का सहारा लिया।
मीना कुमारी का एक बहुत दिलचस्प पहलू है कि वे अभिनेत्री के अलावा एक शायरा (कवयित्री) भी थीं।एक अगस्त 1932 को मुंबई में पैदा हुईं मीना कुमारी का मूल नाम महजबीं बानो था। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में बहुत पहले ही दुनियावी परेशानियों से जूझने का सलीक़ा सीख लिया था। वह चार साल की उम्र से ही अपने परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए बतौर बाल कलाकार फ़िल्मों में काम किया करती थीं। इसकी वजह से उनकी पढ़ाई मुकम्मल नहीं हो पाई। उनके पिता अली बख़्श पारसी थिएटर के एक मंझे हुए कलाकरा थे, लेकिन फ़िल्मी दुनिया में उन्हें शोहरत नहीं मिली।
उनकी मां एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थीं और उनका संबंध टैगोर ख़ानदान से था। घर के माहौल की वजह से अदाकारी मीना कुमारी को विरासत में मिली। इसी अदाकारी को उन्होंने अपने परिवार की तंगी दूर करने का ज़रिया बनाया और इसमें वह कामयाबी भी रहीं। आर्थिक तंगी से तो मीना कुमारी का परिवार उबर गया, लेकिन वह ख़ुद ज़िंदगी भर दुखों की गिरफ़्त से नहीं निकल पाईं।दुखों से घिरी रहने वाली मीना कुमारी की ज़िंदगी में ख़ुशियां मेहरबान हुईं, लेकिन वे ख़ुशियां भी ग़मों का ही सबब बन गईं। पहले से शादीशुदा निर्देशक कमाल अमरोही मीना कुमारी की ज़िंदगी में ख़ुशियों के अलमबरदार बनकर आए। मीना कुमारी को कमाल अमरोही का साथ काफ़ी पसंद था। 1952 में रिलीज़ हुई 'तमाशा' फ़िल्म के सेट पर पहली बार इन दोनों की मुलाक़ात अशोक कुमार ने करवाई थी। इसके कुछ वक़्त बाद महाबलेश्वर से बंबई लौटने के दौरान मीना कुमारी एक गंभीर कार दुर्घटना में घायल हो गई थीं। जिसके बाद उन्हें पुणे के ससून अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कमाल अमरोही उनसे मिलने अस्पताल आया करते थे और जब वो नहीं आते तो दोनों एक दूसरे को ख़त लिखा करते।
यही वो वक़्त था जब कमाल अमरोही और मीना कुमारी के बीच इश्क़ परवान चढ़ना शुरू हुआ। दोनों ने अपनी मोहब्बत को एक पायदान और आगे बढ़ाते हुए शादी कर ली। सादा तरीक़ा से की गई इस शादी की किसी को ख़बर नहीं हुई, लेकिन कुछ समय बाद मीडिया में यह सुर्खियों बन गईं। ख़ुशियों का नया जहां बनाने की कोशिश कर रहीं मीना कुमारी को कमाल अमरोही के साथ भी ज़्यादा ख़ुशियां नसीब नहीं हुईं। इस रिश्ते से एक तो उनके पिता नाराज़ थे, तो वहीं दूसरी तरफ उनकी शादीशुदा ज़िंदगी को भी किसी की नज़र लग गई थी। कमाल अमरोही और मीना कुमारी के दरमियान तनाव और टकराव इस हद तक बढ़ गया कि उन्होंने अलग होने का फ़ैसला कर लिया। दोनों जुदा तो हो गए लेकिन औपचारिक तौर पर कभी तलाक़ नहीं लिया। बेहतरीन उर्दू शायरी का फ़न रखने वाली मीना कुमारी के बारे में मशहूर संगीतकार नौशाद ने कहा था, "ज़ाहिरी तौर पर उनकी शायरी में नाराज़गी नज़र आती है।" तमाम उम्र दुश्वारियों से पीछा छुड़ाने की जद्दोजहद में लगी रहीं मीना कुमारी को आख़िरी वक़्त में बीमारी ने घेर लिया था। उन्होंंने लीवर की बीमारी से लड़ते-लड़ते 31 मार्च 1972 को सिर्फ 38 साल की उम्र में इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
बॉलीवुड की ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी के दर्द और रोमांस से भरे 5 शेर...
खुदा के वास्ते गम को भी तुम न बहलाओ
इसे तो रहने दो मेरा यही तो मेरा है
आगाज तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
हंसी थमी है इन आंखों में यूं नमी की तरह
चमक उठे हैं अंधेरे भी रौशनी की तरह
तेरे कदमों की आहट को ये दिल है ढूंढता हर दम
हर इक आवाज पर इक थरथराहट होती जाती है
जो मेरी रात थी वो आप का सवेरा है