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Thursday, 20th June , 2019 06:50 pmभाषा को लेकर भारत में एक अलग ही माहौल देखा जा रहा है। वहीं अब भाषा को लेकर यूपी में योगी सरकार ने एक नई पहल की है। उत्तर प्रदेश सरकार प्रेस रिलीज को संस्कृत भाषा में भी जारी करेगी। सरकार अब हिंदी, इंग्लिश के साथ-साथ प्रेस रिलीज को संस्कृत में भी जारी करेगी। इसका एक नमूना भी सरकार के जरिए सोमवार को जारी किया जा चुका है। इसके साथ ही संस्कृत में प्रेस रिलीज जारी किए जाने की शुरुआत भी योगी सरकार ने कर दी। वहीं इससे पहले हुए एक कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि संस्कृत भारत का डीएनए है। संस्कृत भारती के जरिए आयोजित कार्यक्रम में सीएम योगी ने कहा था, 'संस्कृत अब केवल धार्मिक मंत्र और रीति रिवाज तक ही सीमित होकर रह गई है। हमें इस बात को समझना चाहिए कि जहां विज्ञान का अंत होता है वहीं से संस्कृत शुरू होती है। हमने दिन प्रतिदिन के जीवन में इसका उपयोग न करके संस्कृत को कमजोर कर दिया है।' बता दें 17वीं लोकसभा के लिए चुने गए सांसदों ने संसद में शपथ ली थी। इनमें से कई सांसदों ने संस्कृत में शपथ ग्रहण की।
हिन्दू धर्म को भ्रमित करने के लिए अक्सर देवी और देवताओं की संख्या 33 करोड़ बताई जाती रही है। धर्मग्रंथों में देवताओं की 33 कोटी बताई गई है। देवभाषा संस्कृत में कोटि के दो अर्थ होते हैं। कोटि का मतलब प्रकार होता है और एक अर्थ करोड़ भी होता। लेकिन यहां कोटि का अर्थ प्रकार है। ग्रंथों को खंगालने के बाद कुल 33 प्रकार के देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है। ये निम्न है प्रकार से हैं:-
12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इन्द्र व प्रजापति को मिलाकर कुल 33 देवता होते हैं। कुछ विद्वान इन्द्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विनी कुमारों को रखते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा हैं।
12 आदित्य:- 1.अंशुमान, 2.अर्यमन, 3.इन्द्र, 4.त्वष्टा, 5.धातु, 6.पर्जन्य, 7.पूषा, 8.भग, 9.मित्र, 10.वरुण, 11.विवस्वान और 12.विष्णु।
8 वसु:- 1.आप, 2.ध्रुव, 3.सोम, 4.धर, 5.अनिल, 6.अनल, 7.प्रत्यूष और 8. प्रभाष।
11 रुद्र :- 1.शम्भु, 2.पिनाकी, 3.गिरीश, 4.स्थाणु, 5.भर्ग, 6.भव, 7.सदाशिव, 8.शिव, 9.हर, 10.शर्व और 11.कपाली।
2 अश्विनी कुमार:- 1.नासत्य और 2.द्स्त्र
कुल : 12+8+11+2=33
आधुनिक विज्ञान सृष्टि के रहस्यों को सुलझाने में बौना पड़ रहा है। अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न मंत्र-विज्ञान की महिमा से विज्ञन आज भी अनभिज्ञ है। उड़न तश्तरियां कहां से आती हैं और कहां गायब हो जाती हैं। इस प्रकार की कई बातें हैं जो आज भी विज्ञान के लिए रहस्य बनी हुई हैं।
आज अगर विज्ञान के साथ संस्कृत का समन्वय कर दिया जाए, तो अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत उन्नति हो सकती है। हिन्दू धर्म के प्राचीन महान ग्रंथों के अलावा बौद्ध, जैन आदि धर्मों के अनेक मूल धार्मिक ग्रंथ भी संस्कृत में ही हैं। संस्कारी जीवन की नींव संस्कृत वर्तमान समय में भौतिक सुख-सुविधाओं का अम्बार होने के बावजूद भी मानव-समाज अवसाद, तनाव, चिंता और अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त है, क्योंकि केवल भौतिक उन्नति से मानव का सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं है, इसके लिए आध्यात्मिक उन्नति अत्यंत जरूरी है।
संस्कृत की धरोहर को सहेजने की दरकार
वर्तमान में ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज और कोलम्बिया जैसे 200 से भी ज्यादा लब्ध-प्रतिष्ठित विदेशी विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जा रही है। नासा के पास 60,000 ताड़ के पत्ते की पांडुलिपियां हैं, जिनका वे अध्ययन कर रहे हैं। माना जाता है कि रूसी, जर्मन, जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं। दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय भारत में नहीं है। जो हैं भी वहां संस्कृत केवल साहित्य और कर्मकांड तक सीमित हैं, विज्ञान के रूप में नहीं।