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Thursday, 20th June , 2019 05:27 pmप्राचीन हिंदू धर्म का एक संप्रदाय अघोर पंथ भी है तथा इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं। अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी तक कोई निश्चित प्रमाण नहीं हैं, मगर इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष माना जाता हैं। शैव (शिव साधक) से संबधित होने के कारण अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है, क्योंकि पुराणों में विदित है कि शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप भी है।
अघोरियों का जीवन कठिन होने के साथ साथ रहस्यमयी भी है तथा इनकी साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी होती है। अघोरियों की हर बात निराली होती है, ये जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब कुछ दे देते हैं। खुलासा डॉट इन में हम आज अघोर पंथ में प्रचलित कई मान्यताओं और धारणाओं पर बात करेंगे और बताएंगे कि कैसे रहते हैं अघोरी।
अघोरियों की साधनाएं
शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना, ये तीन तरह की साधनाएं अघोरी द्वारा की जाती हैं। । शव और शिव साधना में शव की साधना की जाती हैं। इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती का रखा हुआ पैर माना जाता है। इस प्रकार की साधना में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है। जबकि श्मशान साधना में आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है। इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ की पूजा कर के गंगा जल चढ़ाया जाता है । शवपीठ से तात्पर्य उस स्थान से है जहाँ शवों का दाह संस्कार किया जाता है| इस साधना में मांस-मदिरा की जगह प्रसाद के रूप में मावा चढ़ाया जाता है।
अघोरी शवों पर करते हैं साधना
हिन्दू धर्म के अनुसार आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित किया जाता है जो डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं। अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से निकल कर तंत्र सिद्धि में इस्तमाल करते है|
मुर्दे से बात करने में सक्षम होते हैं अघाेरी
अघोरियों के बारे में माना जाता है कि ये बहुत ही हठी व गुस्से वाले होते है । अधिकांश अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जिनको देख कर लगता है जैसे ये बहुत गुस्से में हो, लेकिन मन से वो उतने ही शांत होते है।
शव के साथ शारीरिक सम्बन्ध
यह बहुत प्रचलित धारणा है कि अघोरी साधु शवों की साधना के साथ ही उनसे शारीरिक सम्बन्ध भी बनाते हैं। यह बात खुद अघोरी भी मानते हैं। इसके पीछे का कारण वो यह बताते हैं कि शिव और शक्ति की उपासना करने का यह तरीका है। उनका कहना है कि उपासना करने का यह सबसे सरल तरीका है, वीभत्स में भी ईश्वर के प्रति समर्पण। वो मानते हैं कि अगर शव के साथ शारीरिक क्रिया के दौरान भी मन ईश्वर भक्ति में लगा है तो इससे बढ़कर साधना का स्तर क्या होगा।
सिर्फ शव नहीं, जीवितों के साथ भी बनाते हैं सम्बन्ध
अन्य साधुओं की तरह ये ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते। बल्कि शव पर राख से लिपटे मंत्रों और ढोल नगाड़ों के बीच शारीरिक सम्बंध बनाते हैं। यह शारीरिक सम्बन्ध बनाने की क्रिया भी साधना का ही हिस्सा है खासकर उस वक्त जब महिला के मासिक चल रहे हों। कहा जाता है कि ऐसा करने से अघोरियों की शक्ति बढ़ती हैं।