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ग़ज़ल

[Edited By: Mahindra Neh]

Friday, 7th June , 2019 12:50 pm

नंगे पैरों ही चला हूँ मां कसम 
सुर्ख आहन में ढला हूँ मां कसम

रंग तन का आबनूसी हो गया 
धूप में इतना जला हूँ मां कसम

दिख रहा हूँ इतना खुश तो जानिये 
गर्दिशों में ही पला हूँ मां कसम

मुझको अपनी तरबियत पर नाज़ है 
एक मिटटी का डला हूँ मां कसम

क़त्ल करके भी बहुत पछताओगे 
इक मुसलसल सिलसिला हूँ मां कसम

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