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कमजोर हो रही भारत की अर्थव्‍यवस्‍था, राष्ट्रपति और भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर के अलग-अलग विचार

[Edited By: Admin]

Friday, 21st June , 2019 12:48 pm

संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को ये कहा था कि भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है। वहीं शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने अर्थव्‍यवस्‍था की रफ्तार को लेकर बड़ी बात कह दी। पिछली मौद्रिक नीति समिति बैठक में ब्याज दरों में कटौती के लिए तर्क देते हुए दास ने कहा था कि इस बात के स्पष्ट संकेत मिल रहे हैं कि आर्थिक गतिविधियां कमजोर हुईं हैं। इसी महीने 3-6 जून के बीच आयोजित MPC की बैठक में केंद्रीय बैंक ने प्रमुख ब्याज दरों में कटौती करने का फैसला लिया था। 

एमपीसी की बैठक के मिनिट्स के अनुसार आरबीआई गवर्नर ने कहा, ” वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में जीडीपी विकास दर घटकर 5.8 फीसदी होने से इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि आर्थिक गतिविधियां कमजोर हुई हैं।” दास ने कहा, “आर्थिक विकास दर की रफ्तार स्पष्ट रूप से कमजोर हुई है जबकि नीतिगत ब्याज दर में पिछली दो कटौती का हस्तांतरण होने के बावजूद प्रमुख महंगाई दर 2019-20 में चार फीसदी से नीचे रहने का अनुमान है।” अर्थव्‍यवस्‍था की रफ्तार को लेकर पूर्व आर्थिक सलाहकार (CEA) अरविंद सुब्रह्मण्यम ने भी सवाल उठाए थे. दो दिन पहले, सुब्रह्मण्यम ने अपने रिसर्च पेपर में दावा किया था कि 2011-12 के बाद की सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विकास दर के आंकड़ों को ज्यादा करके आंका गया है.

सुब्रह्मण्यम ने अपने शोध-पत्र ‘इंडियाज जीडीपी मिस-एस्टिमेशन : लाइकलीहुड, मैग्निट्यूड्स, मेकेनिज्म्स एंड इंप्लीकेशंस’ में दावा किया है कि 2011-12 से लेकर 2016-17 के बीच भारत की जीडीपी विकास दर का आंकलन सालाना 2.5 फीसदी अधिक किया गया है।

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (PMEC) ने GDP पर सुब्रह्मण्यम के रिसर्च पेपर को खारिज कर दिया. बिबेक देबराय की अध्यक्षता में PMEC ने सुब्रह्मण्यम के पेपर में कई खामियां बताईं। परिषद ने सुब्रह्मण्यम के उस दावे पर भी सवाल किया है, जिसमें कहा गया है कि शोध-पत्र में इस्तेमाल किए गए 17 संकेतक 2001-02 से लेकर 2016-17 के दौरान के GDP से सहसंबद्ध हैं। 

DBS बैंक ने दिया भारत को झटका

DBS बैंक ने भारत की जीडीपी के कम होने का सबसे बड़ा कारण अमेरिका-चीन में बढ़ता व्यापार युद्ध, भारत-अमेरिका में हाल के दिनों में अपने-अपने उत्पादों के निर्यात पर टैक्स बढ़ाना बताया है। साथ ही डीबीएस ने चुनौतीपूर्ण व्यापार परिदृश्य में निर्यात के मोर्चे दिक्कतों की वजह से वृद्धि दर के अनुमान को कम किया है।

सिंगापुर में हुई थी स्थापना

डीबीएस बैंक एक बहुराष्ट्रीय बैंकिंग और वित्तीय सेवा निगम है जिसका मुख्यालय मरीना बे फाइनेंशियल सेंटर टॉवर 3 मरीना बे, सिंगापुर में है। इसकी स्थापना जुलाई 2003 में क्षेत्रीय बैंक के रूप में की गई थी। इसमें लगभग ‎24 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं। 

आपको बता दें कि इससे पहले FITCH ने भी वित्त वर्ष 2020 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ को घटा दिया था। फिच (FITCH) ने भारत के विकास दर अनुमान में 0.2 फीसदी तक की कटौती की थी। इसी के साथ फिच (FITCH) ने चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ को 6.6 फीसदी तक रहने का अनुमान लगाया था। 

पहले भी घटा चुका है जीडीपी ग्रोथ की रेट

इससे पहले मार्च में भी फिच ने अर्थव्‍यवस्‍था में कमजोरी होने के अनुमान के साथ भारत को तगड़ा झटका दिया था। उस समय ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ने अगले फाइनेंशियल ईयर यानी 2019-20 के लिए भारत का (जीडीपी) ग्रोथ अनुमान को 7 फीसदी से घटाकर 6.8 फीसदी कर दिया था। 

चीन के बराबर पहुंचा भारत 

इससे पहले फिच चालू फाइनेंशियल ईयर के लिए भी जीडीपी ग्रोथ को घटा चुका है. फिच ने पिछले साल दिसंबर में चालू फाइनेंशियल ईयर के लिए आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 7.8 फीसदी से घटाकर 7.2 फीसदी कर दिया था। फिच की रिपोर्ट में भारत के जीडीपी अनुमान के जो आंकड़े दिए गए हैं वो चीन के बराबर पहुंच गया है. दरअसल, 2018 में चीन की रफ्तार 6.6 फीसदी रही थी। 

पांच साल के निचले स्तर पर जीडीपी

फाइनेंशियल ईयर 2018-19 में भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार पांच साल के निचले स्तर, 6.8 फीसदी पर पहुंच गई है. जनवरी-मार्च तिमाही में विकास दर घटकर 5.8 फीसदी पर पहुंच गई, जो इसका पांच वर्षों का निचला स्तर है. इसी के साथ फिच का कहना है कि हम वित्त वर्ष 2019-20 में 6.6 फीसदी ग्रोथ की उम्मीद कर रहे हैं. इसके अलावा 2020-21 में 7.1 फीसदी और 2021-22 में यह 7 फीसदी रहने का अनुमान है.

मैन्युफैक्चरिंग–एग्रीकल्चर सेक्टर ने दिया झटका

किफिच ने कहा है कि मैन्युफैक्चरिंग और एग्रीकल्चर सेक्टर में सुस्ती की वजह से ये गिरावट देखने को मिल रही है. इकोनॉमी में सुस्ती की वजह घरेलू ही रही है. रिपोर्ट के मुताबिक ऑटो और टूव्हीलर्स जैसे नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों (एनबीएफसी) पर निर्भर क्षेत्रों में कर्ज में सख्ती देखने को मिल रही है, जिससे सेल्स में कमी आई है. वहीं, फूड इनफ्लेशन स्थिर बनी हुई है, जबकि बीते साल यह निगेटिव रही थी. इससे किसानों की आय पर दबाव बढ़ा है.

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