देश में आर्थिक संकट जैसे हालात बन रहे हैं। अब मोदी सरकार को कुछ ऐसा करना होगा जिससे संकट के बादल को हटाया जा सके। पांच जुलाई को घोषित होने वाले आम बजट से पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने शनिवार को शीर्ष अर्थशास्त्रियों और उद्योग जगत के दिग्गजों के साथ बैठक की थी। माना जा रहा है कि आर्थिक मंदी के असर का खंडन करते रहने के बावजूद अब मोदी सरकार में चिंता दिखनी शुरू हो गई है। पीएम मोदी ने भारत को आने वाले समय में पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का वादा भले ही किया हो लेकिन आर्थिक संकेतक कुछ और ही इशारा कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ देश में बेरोज़गारी 45 सालों में सबसे ज़्यादा हो गई है और आर्थिक वृद्धि दर में भारत चीन से पिछड़ गया है।
अब मोदी सरकार के सामने लगातार बिगड़ती अर्थव्यवस्था की चुनौती है। इतने बड़े पैमाने पर बैठक बुलाने का मतलब है कि वो इस बारे में गंभीर हैं कि अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ करना होगा। मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर और उपभोक्ता बाज़ार में सुस्ती के साथ बेरोज़गारी के आंकड़ों को भले ही मोदी सरकार ने नकारा हो लेकिन ये आर्थिक विकास में अब बड़ी चिंता बन चुके हैं।
ये ताजा चिंतन मनन यही दिखाता है कि जिन ज़मीनी सच्चाइयों से सरकार मुंह मोड़े थी, अब कहीं न कहीं वो इन्हें स्वीकर कर रही है। लेकिन मोदी सरकार की हालत उस डॉक्टर जैसी है जिसके सामने ये बड़ा सवाल है कि बीमारी न ठीक होने पर दवा की डोज़ बढ़ाई जाए या दवा बदली जाए। अर्थव्यवस्था में जान फ़ूंकने के लिए मोदी ने रिज़र्व बैंक पर दबाव डाला और ब्याज़ दरों में कटौती की गई लेकिन उससे भी कोई फ़र्क पड़ता नहीं दिख रहा है। समस्या ये है कि मोदी के आर्थिक सलाहकारों के घेरे में वही लोग हैं जिनकी सलाह पर पिछले पांच साल में नीतियां तय की गईं।