पीएम ने आगे कहा कि, हमने पिछली सदी में वो समय भी देखा है जब प्रकृति के दोहन को शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक मान लिया गया था. 1947 में जब देश में केवल आखिरी तीन चीते बचे थे तो उनका भी शिकार कर लिया गया. ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुर्नवास के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ. आज आजादी के अमृतकाल में देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास में जुट गया है. अमृत में वो ताकत होती है जो मृत को भी पुनर्जीवित कर सकता है.
पीएम मोदी ने आगे कहा कि, ये एक ऐसा काम है जिसे कोई महत्व नहीं देता. हमने इसके पीछे पूरी ताकत लगाई, पूरी प्लानिंग की गई, वैज्ञानिकों ने रिसर्च की और वहां के एक्सपर्ट भी भारत आए. पूरे देश में चीतों के लिए सबसे उपयुक्त क्षेत्र के लिए सर्वे हुए, जिसके बाद कूनो नेशनल पार्क को चुना गया. आज हमारी वो मेहनत परिणाम के रूप में हमारे सामने है.
पीएम मोदी ने कहा कि, ये बात सही है कि जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है. विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं. कुनो नेशनल पार्क में जब चीता फिर से दौड़ेंगे, तो यहां का grassland ecosystem फिर से रिस्टोर होगा, बायोडायवर्सिटी और बढ़ेगी.
चीतों के दीदार को लेकर पीएम मोदी ने कहा कि, कूनो नेशनल पार्क में छोड़े गए चीतों को देखने के लिए देशवासियों को कुछ महीने का धैर्य दिखाना होगा, इंतजार करना होगा. आज ये चीते मेहमान बनकर आए हैं, इस क्षेत्र से अनजान हैं. कूनो नेशनल पार्क को ये चीते अपना घर बना पाएं, इसके लिए हमें इन चीतों को भी कुछ महीने का समय देना होगा. अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन्स पर चलते हुए भारत इन चीतों को बसाने की पूरी कोशिश कर रहा है. हमें अपने प्रयासों को विफल नहीं होने देना है
पीएम ने आगे कहा कि, आज 21वीं सदी का भारत, पूरी दुनिया को संदेश दे रहा है कि इकॉनमी और ईकोलॉजी कोई विरोधाभाषी क्षेत्र नहीं है. पर्यावरण की रक्षा के साथ ही, देश की प्रगति भी हो सकती है, ये भारत ने दुनिया को करके दिखाया है. हमारे यहां एशियाई शेरों की संख्या में भी बड़ा इजाफा हुआ है. इसी तरह, आज गुजरात देश में एशियाई शेरों का बड़ा क्षेत्र बनकर उभरा है. इसके पीछे दशकों की मेहनत, रिसर्च बेस्ड पॉलिसी और जन-भागीदारी की बड़ी भूमिका है.
Tigers की संख्या को दोगुना करने का जो लक्ष्य तय किया गया था उसे समय से पहले हासिल किया है. असम में एक समय एक सींग वाले गैंडों का अस्तित्व खतरे में पड़ने लगा था, लेकिन आज उनकी भी संख्या में वृद्धि हुई है. हाथियों की संख्या भी पिछले वर्षों में बढ़कर 30 हजार से ज्यादा हो गई है. आज देश में 75 wetlands को रामसर साइट्स के रूप में घोषित किया गया है, जिनमें 26 साइट्स पिछले 4 वर्षों में ही जोड़ी गई हैं. देश के इन प्रयासों का प्रभाव आने वाली सदियों तक दिखेगा, और प्रगति के नए पथ प्रशस्त करेगा.